तेरे सजदे में तो हर रोज़ झुकता है ये दिल,
कभी तू भी तो ख़ुदा होने का फर्ज़ निभा...!!!
Surbh! Nema
उनकी बेरूख़ी ही तो वजह थी,
जो यूँ बदल गए हम।
आज उनकी ही शिकायत है...
आख़िर क्यों बदल गए हम...!!!
Surbh! Nema
एक सरसराहट सी न जानें कहाँ से मेरे कानों तक आ पड़ी,
गौर से देखा तो एक कागज़ की दुनिया मेरे सामने थी खुली पड़ी।
कुछ कह रहा था जैसे वो मुझसे,
मैं भी उसे सुन रही थी,
उसकी बातों को अपने अल्फाजों के संग उस पर ही बुन रही थी।
ऐसे ही एक कागज़ मुझसे अपनी दास्तान कह गया,
किसी की ख़ुशी तो किसी का ग़म मैं सब कुछ हँसकर सह गया।
कलम उठती और लिखती चली जाती,
शब्दों की लय मुझे हरदम सजाती।
कोई खिलखिला उठता मेरे संग,
तो कोई अपने अरमानों का संसार बसाता,
एक छोटा सा टुकड़ा मैं कागज़ का कितने दिलों की बात कह जाता।
जो लिखता सफ़र ज़िन्दगी का मुझे अपना हमसफ़र सा पाता,
जो लाता दर्द साथ में मैं उसका हमदर्द बन जाता।
कोई बाँटता ख़ुशियाँ मुझसे,तो कोई मुझे हमराज़ बनाता,
कुछ बीते लम्हों की यादों में कोई मेरे संग नीर बहाता।
ऐसे ही जब चंद पंक्तियाँ मेरी गोद मे समा जाती,
मेरी दुनिया भी मानो जैसे पूरी तरह बदल जाती।
शब्द रूपी रंगों से जब मैं पूरी तरह सज जाता,
तब मैं एक आम कागज़ से किसी की "रचना" बन जाता…!!!
Surbh! Nema
29-04-2016
9:24AM