वो लोग.....
जो हँसते बहुत कमाल का हैं ना,
कभी तन्हाई में मिलिएगा उनसे,
रोते भी बहुत कमाल हैं...!!!
Surbh! Nema
वो लोग.....
जो हँसते बहुत कमाल का हैं ना,
कभी तन्हाई में मिलिएगा उनसे,
रोते भी बहुत कमाल हैं...!!!
Surbh! Nema
वो माँ ही है जो सारे नख़रे सह जाती है,
वर्ना हमारे नख़रे तो......
ख़ुद हमसे ही उठाए नहीं जाते...!!!
Surbh! Nema
मुकम्मल दिन है आज,
हम पर एक अहसान कर दो ।
बरसों से कैद हैं गुजरी यादों में,
हमको इनसे आज़ाद कर दो...!!!
Surbh! Nema
टूटे जो कभी तो फिर सँवर जाएंगे,
तेरा साथ हो ग़र हर दर्द सह जाएंगे ।
तू ना रुठना "कान्हा" कभी,
सच तेरी कसम......
हम बिखर जाएंगे...!!!
Surbh! Nema
हर बार दर्द ही बयाँ हो,
ये ज़रूरी नहीं जनाब ।
कुछ अहसास लबों के नहीं,
कलम के ही मोहताज़ होते हैं...!!!
Surbh! Nema
कुछ अच्छे कुछ बुरे लम्हें हम,
दामन में अपने भर चले ।
यादों का पिटारा बंद कर,
हम लौट कर अपने घर चले ।
Surbh! Nema
बेवजह मुस्कुराते लबों का ग़म,
अक्सर वो पढ़ लिया करते हैं ।
मेरे दोस्त नहीं जनाब फरिश्ते हैं वो....
जो कुछ कहे बिना भी....
सब सुन लिया करते हैं...!!!
Surbh! Nema
कलम के नूर से बख़्शा है रब ने,
क्यूँ ना ये तारीख़ इस कदर सजाई जाए,
सालगिरह की पहली मुबारक.....
ख़ुद की ही कलम से रचाई जाए...!!!
Surbh! Nema