Saturday 24 December 2016

!!!…कागज़-कलम…!!!

कागज़-कलम एक बार फिर,
मैनें आज उठाई है ,
चंद शब्दों की तलाश मुझे जाने कहाँ ले आई है
लिखना तो बहुत कुछ चाहूँ मैं,
विचारों के तूफ़ान को एक मोड़ देना चाहूँ मैं,
शब्दों से खेलना चाहूँ, तो कभी उनसे बातें करना चाहूँ ,
अपने शब्दों के संग कभी हँसना चाहूँ तो कभी रोना चाहूँ,
ज़िन्दगी के हर लम्हें को यादों में संजोना चाहूँ
शब्दों से बयाँ हो जाए जो,
हर वो बात मैं लिखना चाहूँ।
खुद की ही तलाश मुझे इस सफ़र पर ले आई है,
क्योंकि………

कागज़-कलम एक बार फिर,
मैनें आज उठाई है ……!!!!

                                         
                                    Surbh! Nema
                                      12-04-16

Monday 21 November 2016

!!!…ये सैलाब कहाँ से आया है…!!!

दिल दहल उठा है सबका,
घर न जाने कितनों का उजड़ गया,
उस घनघोर काली रात के संग,
कितनों का सवेरा ही रूठ गया।

आया है ये सैलाब कहाँ से,
क्यों ये मंज़र लाया है,
हँसते मुस्कराते चेहरों पर अचानक,
क्यों छाया ग़म का साया है।

रोते बिलखते लोगों को देख ,
ये सवाल न जाने क्यों आया है…
मुरझाया है कोई फूल खिलने से पहले,
तो किसी पर पतझड़ ने कहर क्यों ढाया है।

गूँज उठता था घर आँगन जिस किलकारी से,
सफ़ेद लिबाज़ ओढ़े वो ख़ामोश सा क्यों आया है।

किसी की टूटी लाठी बुढ़ापे की,
तो किसी ने खोया अपना साया है।

रूह काँप उठी है सभी की,
"ए-मौत",
ये खेल तूने कैसा रचाया है।

पूछ रहा है हर शख्स एक-दुजे से…
आया है ये सैलाब कहाँ से और क्यों ये मंज़र लाया है…!!!!
        
                                    Surbh! Nema
                                     21-11-16

Friday 11 November 2016

!!!…एक ख़त, ज़िंदगी के नाम…!!!

अजीब कश्मकश है ए ज़िंदगी तेरी,
हर पल तेरे नए रूप से,
तू वाकिफ कराती है।
अनजानी सी एक तलाश की ख़ातिर,
हर रोज़ एक ही कारवाँ पर ले आती है।

न जाने क्यों तेरे संग-संग ,
मैं यूँ बदलते जाती हूँ,
जैसे तू रंगती मुझको,
मैं वैसे ही रंगते जाती हूँ।

क्यों कभी खिलखिला उठती हूँ
बेवजह की बातों पर,
तो क्यों कभी वजह होते भी,
खामोश सी रह जाती हूँ।

क्यों बनती हूँ कभी सहारा किसी का,
तो क्यों कभी, अपने ही साये को तरस जाती हूँ।

क्यों कभी खुद राह बनाती अपनी,
तो क्यों कभी बंजारों सी,
राह-राह भटकती हूँ।

क्यों कभी जीतने की ज़िद होती है दुनिया से,
तो क्यों कभी खुद से ही हार जाती हूँ।

क्यों कभी बेपरवाह हो इस दुनिया से,
खुद में ही उड़ती फिरती हूँ,
तो क्यों कभी भरी महफिल में भी,
तन्हा सी रह जाती हूँ।

इन सवालों से मुखातिब हो जब मैं,
निः शब्द सी रह जाती हूँ,
तब समझदारी की हर बात से परे हो,
बेफिक्र से एक बचपन की तलाश में,
अक्सर मैं निकल जाती हूँ।

                              
                                 Surbh! Nema
                                  10-11-16

Tuesday 8 November 2016

!!!…एक गाय और मेरी अधूरी चाहत…!!!

एक दर्द जो बस मैने देखा,,,
पर अफ़सोस मैं कुछ नहीं कर पाई…!!!

दोपहर का कुछ 3 या 4 बजा था,
अप्रैल का महीना, चिलचिलाती धूप पर फिर भी पता नहीं क्यों बाहर निकल कर घूमने मन किया…!!!

अचानक मेरी नज़र एक गाय पर पड़ी , किसकी थी ,कहाँ से आई थी , कुछ पता नहीं बस इतना समझ आ रहा था कि वो अपने बच्चे को जन्म देने वाली थी,  बहुत दर्द में थी वो जैसे किसी को मदद के लिए पुकार रही हो……
आने-जाने वाले लोगों को ऐसे देखती मानोकह रही हो कोई तो उसकी मदद करे…!!!

लोगों ने भी उसे देखा पर हम सब अपनी-अपनी ज़िन्दगी में शायद इतने मशरूफ हो गए हैं कि हमें किसी का दर्द दिखाई ही नहीं देता…!!!

खैर , मैं ये सब देख रही थी और उसकी मदद करना चाहती थी और मैने कोशिश भी की…!!!

मैने Animal Welfare Indore का Number  का पता कर वहाँ Call किया लेकिन गाय के मालिक का पता न होने के कारण उन्होंने मदद करने से मना कर दिया ऐसे पशुओं का इलाज सिर्फ  Government Doctor ही कर सकते हैं जिन तक पहुँचना मेरे लिए नामुमकिन था…!!!!

मेरी उम्मीद हार गयी और अपनी आँखों में आँसू लिए मैं अपने Room  में वापस आ गयी …!!

कुछ देर बाद मैने देखा तो वो गाय उस जगह पर नहीं थी ऐसा लगा मेरे उम्मीद खोते ही उसने भी हार मान ली औरअब  फिर  किसी और से  मदद की उम्मीद की  तलाश में निकल गयी……!!!!!!

                                     Surbh! Nema
                                      05-04-16