Monday 21 November 2016

!!!…ये सैलाब कहाँ से आया है…!!!

दिल दहल उठा है सबका,
घर न जाने कितनों का उजड़ गया,
उस घनघोर काली रात के संग,
कितनों का सवेरा ही रूठ गया।

आया है ये सैलाब कहाँ से,
क्यों ये मंज़र लाया है,
हँसते मुस्कराते चेहरों पर अचानक,
क्यों छाया ग़म का साया है।

रोते बिलखते लोगों को देख ,
ये सवाल न जाने क्यों आया है…
मुरझाया है कोई फूल खिलने से पहले,
तो किसी पर पतझड़ ने कहर क्यों ढाया है।

गूँज उठता था घर आँगन जिस किलकारी से,
सफ़ेद लिबाज़ ओढ़े वो ख़ामोश सा क्यों आया है।

किसी की टूटी लाठी बुढ़ापे की,
तो किसी ने खोया अपना साया है।

रूह काँप उठी है सभी की,
"ए-मौत",
ये खेल तूने कैसा रचाया है।

पूछ रहा है हर शख्स एक-दुजे से…
आया है ये सैलाब कहाँ से और क्यों ये मंज़र लाया है…!!!!
        
                                    Surbh! Nema
                                     21-11-16

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