लाखों दिलों को जुदा किया जिस वक़्त ने,
वही वक़्त खुद देखो आज...
मोहब्बत की दहलीज़ पर खड़ा है...!!!
✍सुरभि
लाखों दिलों को जुदा किया जिस वक़्त ने,
वही वक़्त खुद देखो आज...
मोहब्बत की दहलीज़ पर खड़ा है...!!!
✍सुरभि
व्यथित है मन,
प्रश्नित लाखों पांचाली,
क्या फिर से चीर बढ़ाओगे तुम ।
क्या सृष्टि की रक्षा की ख़ातिर,
फिर "गोविन्द" कहलाओगे तुम ।
धर्म धँस गया अधर्म तले,
अन्याय ही अब न्याय है,
पर अब भी एक आस है "माधव"
फिर महासंग्राम रचाओगे तुम ।
बात होगी जो नारी के रक्षण की,
तो अब सुदर्शन भी उठाओगे तुम ।
हाँ "कान्हा" विश्वास है मुझे,
एक दिन ज़रूर आओगे तुम...
एक दिन ज़रूर आओगे तुम...!!!
✍सुरभि
१२-१२-२०१७
११:४१pm
बड़ी अजीब फ़ितरत है इन अल्फ़ाज़ों की,
कमबख़्त हैं तो आवारा...
पर भटकते हैं,
तो सिर्फ तेरी गलियों में...!!!
Surbh! Nema
फिर चली है हवा हमें बुझाने की ख़ातिर
कोई समझाए इन्हें....
आन्धियों में सुलगे चिराग,
हवा के झोंको से नहीं बुझते...!!!
Surbh! Nema
तुझसे ख्वाबों में मिलने से भी कतराता है ये दिल,
डर है….
कहीं ये अधूरी मोहब्बत पूरी होने को न मचल जाए…!!!!
Surbh! Nema
प्रजापती सा मुल्क मेरा,
समिति उसकी पुत्री की भांति ।
संसद में बैठी करती अठखेली,
पिता के सिर का ताज सजाती ।
छिड़ी थी जब जंग-ए-आज़ादी,
पुत्री होने का फर्ज़ निभाया ।
लहरा के परचम आज़ादी का,
जीत का सबने जश्न मनाया ।
ये अन्न देती धान्य देती,
न्याय-अन्याय का भेद कराती ।
कभी कराती बोध अधिकारों का,
कभी खुद संविधान बन जाती ।
लड़ती ये आम जन के हक़ में,
शंख्नाद सा बिगुल बजाती ।
धन्य है ये सुता "भारत" की,
माता का अभिमान बढ़ाती ।
संसद में बैठी करती अठखेली,
पिता के सिर का ताज सजाती ।
पिता के सिर का ताज सजाती ।
Surbh! Nema
२३-११-२०१७
०९:१९ am
कसूर हमारा ही होगा वर्ना,
दुनिया की आदत में शुमार बातें...
हम तक आते-आते गुनाह ना बनतीं...!!!
Surbh! Nema
बेहद शोर मचाते हैं ये अल्फाज़,
मुल्क में कुछ बदलाव की ख़ातिर ।
पर लोगो के मन का सन्नाटा अक्सर,
इन्हें भी ख़ामोश सा कर देता है...!!!
Surbh! Nema
बड़ा चाव था उस गरीब की आँखों में,
उस खिलौने से जब वो खेल रहा था ।
बेकार कहकर जिसे अमीर बच्चा,
कूड़े में एक रोज़ फेंक गया था...!!!
Surbh! Nema
खामोशी हूँ मैं,
मेरी आवाज़ है वो।
जिसे माँगा है हरपल,
वही अरदास है वो।
कुछ यूँ रिश्ता है मेरा उससे…
मैं हूँ एक अल्हड़ कलम,
मेरा हर एक अल्फ़ाज़ है वो…!!!!
Surbh! Nema
तिनका-तिनका जोड़,
आशियाँ बनाया था जिस पर,
ना जानें कौन-कब.....
वो पेड़ ही काट गया...!!!
Surbh! Nema
०९-०९-२०१७
०६:४९pm
भोर हुयी थी आज मेरी,
माँ तेरी गोद में सोते-सोते ।
फिर ख्वाबों की डोर उलझी कुछ यूँ....
कि फासले हो गए मीलों के तुझसे,
मेरी ये सान्झ होते-होते ।
Surbh! Nema
फ़ुर्सत मिल जाए बड़े बाज़ारो से,
तो ज़रा नुक्कड़ पर भी रुख़ कर लेना ।
शायद अपना घर रोशन करने की तेरी चाहत,
किसी दूजे का आँगन भी रोशन कर दे...!!!
Surbh! Nema
बरसों से उलझा है ये दिल,
आज मेरी हर एक ख़ता बता दो...
चलो जाने की ना सही,
यूँ लौट आने की ही वजह बता दो...!!!
Surbh! Nema
लाख कोशिश की,
ज़िंदगी तुझे पूरा लिखने की ।
पर हर बार तेरी परिभाषा में,
एक "हलन्त" लग ही जाता है...!!!
Surbh! Nema
तेरा वक़्त उस वक़्त को वक़्त ना दे सका,
जहाँ ठहरा रहा मेरा वक्त,
सिर्फ तेरे वक्त के लिए...!!!
Surbh! Nema
चाँदनी है बाँहों में,
शरद की सौगात लगी है।
होगी पूनम तेरे इश़्क की चंदा,
यहाँ तो अब भी अमास लगी है..!!!
Surbh! Nema
हमने ख़ौफ खाया भी तो,
सिर्फ उनकी जुदायी से ।
और वो जुदा हो गए एक रोज़ ये कहकर....
जनाब तुम डरते बहुत हो...!!!
Surbh! Nema
एक सवाल मेरे ज़हन को बहुत सताता है....
"दशहरा" कहकर हर शख़्स,
क्यों रावण को जलाता है ।
जिसे प्रभु श्री राम ने तारा,
मोह-माया के बंधन से उबारा ।
दोषी था वो स्त्री जाति का,
इस बात का उसे अहसास दिलाया ।
पर हमारा समाज ये अब क्या कर रहा है....
जो रावण है ही नही उसे,
क्यों ख़ुद राम बनकर मार रहा है ।
वो तो माता सीता को बस हर कर लाया,
पर वाह रे समाज....
तूने क्या ये ढोंग रचाया ।
अपराधी होता है जो बेटी का,
अक्सर तुम उसे बचाते हो ।
कहते हो कभी नाबलिग उसे,
कभी हालात का हवाला दे जाते हो ।
करते हो जिन बेटियों की कोख़ में हत्या...
उन्हें ही कन्या कहकर,
नौ दिन भोज कराते हो ।
मान नही सम्मान नहीं,
दूजे की बहन का तेरी नज़र में...
पर देखे भी कोई जो तेरी बहन को,
तो किस हक़ से त्यौरी चढ़ाते हो ।
अरे मर्द हो तो ख़ुद लड़ो जंग अपनी,
माँ-बहन की बातें कर,
क्यों आड़ में उसकी छिप जाते हो ।
अरे वो रावण तो मर गया,
इस संसार से तर गया ।
कभी फ़ुर्सत से अपने भीतर भी झाँक,
कोई रावण तुझमे भी तो नहीं....
ज़रा इस सच को भी आँक....
ज़रा इस सच को भी आँक...!!!
Surbh! Nema
२९-०९-२०१७
४:०९pm
वक़्त तू कैसी करवट ले रहा है......
पेट भरने की ख़ातिर अब इंसान,
रावण की मूरत भी बेच रहा है...!!!
Surbh! Nema
मुद्दतो बाद एक शिकस्त दी थी तुझे,
पर वाह रे ज़िंदगी....
तूने हमसे लड़ने का ही हक़ छीन लिया...!!!
Surbh! Nema
तरस गई माँ मीठे बोल को जिसकी,
सुना है वो बेटा अब शेरावाली के...
जयकारे लगाया करता है...!!!.
Surbh! Nema
शायर नहीं जनाब,
मोहब्बत के हकीम हैं वो....
जो अपने ही ज़ख़्मों को खुरेद,
अल्फ़ाज़ों का मरहम बनाते हैं...!!!
Surbh! Nema
नहीं ओढ़े जाते,
नए-नए रंग के चोले मुझसे ।
तेरी मिट्टी की बनीं हूँ कान्हा,
मुझको फिर से मिट्टी बना दे...!!!
Surbh! Nema
हम तो मशरूफ़ रहे जीत के जश्न में ही,
और ये दिल एक गुस्ताख़ी कर बैठा ।
ना जाने क्या बात थी उसकी मुस्कुराहट में,
कमबख़्त हमसे ही बेवफाई कर बैठा...!!!
Surbh! Nema
उसकी ख़ुशी हमारी तकलीफ़ में थी,
और हम नासमझ....
हर दर पर उसकी खुशियाँ ही माँगते रहे...!!!
Surbh! Nema
वो लोग.....
जो हँसते बहुत कमाल का हैं ना,
कभी तन्हाई में मिलिएगा उनसे,
रोते भी बहुत कमाल हैं...!!!
Surbh! Nema
वो माँ ही है जो सारे नख़रे सह जाती है,
वर्ना हमारे नख़रे तो......
ख़ुद हमसे ही उठाए नहीं जाते...!!!
Surbh! Nema
मुकम्मल दिन है आज,
हम पर एक अहसान कर दो ।
बरसों से कैद हैं गुजरी यादों में,
हमको इनसे आज़ाद कर दो...!!!
Surbh! Nema
टूटे जो कभी तो फिर सँवर जाएंगे,
तेरा साथ हो ग़र हर दर्द सह जाएंगे ।
तू ना रुठना "कान्हा" कभी,
सच तेरी कसम......
हम बिखर जाएंगे...!!!
Surbh! Nema
हर बार दर्द ही बयाँ हो,
ये ज़रूरी नहीं जनाब ।
कुछ अहसास लबों के नहीं,
कलम के ही मोहताज़ होते हैं...!!!
Surbh! Nema
कुछ अच्छे कुछ बुरे लम्हें हम,
दामन में अपने भर चले ।
यादों का पिटारा बंद कर,
हम लौट कर अपने घर चले ।
Surbh! Nema
बेवजह मुस्कुराते लबों का ग़म,
अक्सर वो पढ़ लिया करते हैं ।
मेरे दोस्त नहीं जनाब फरिश्ते हैं वो....
जो कुछ कहे बिना भी....
सब सुन लिया करते हैं...!!!
Surbh! Nema
कलम के नूर से बख़्शा है रब ने,
क्यूँ ना ये तारीख़ इस कदर सजाई जाए,
सालगिरह की पहली मुबारक.....
ख़ुद की ही कलम से रचाई जाए...!!!
Surbh! Nema
हँसता खिलखिलता ये दिल मेरा,
ऩम अांखों संग रो गया ।
क्यों एक अजनबी अपना सा होकर,
फिर अजनबी सा हो गया...!!!
Surbh! Nema
जलता है कभी तपिश के संग,
कभी बारिश में भीगा करता है ।
वो है तो सिग्नल का एक पेपरवाला....
पर खुद्दारी से जिया करता है...!!!
Surbh! Nema
अक्सर ये सोच ख़ुश हो जाते हैं हम,
कि हमें नज़र अन्दाज़ करने की खातिर ही सही....
तेरी हम पर नज़र तो है...!!!
Surbh! Nema
हर रोग स्वीकार है,
हर मर्ज स्वीकार है,
तू बैरागी है तो क्या हुआ...
तेरी इस प्रेम-पुजारन को,
तेरा ये बैराग भी स्वीकार है...!!!
Surbh! Nema
जाना है तो संग अपने,
यादें भी तो लेता जा,
इस फ़कीर को रईस से,
फिर फ़कीर तो करता जा...!!!
Surbh! Nema
तेरे शहर की हवाओं से गुफ़्तगु कर जाना हमनें,
बहुत अधूरी सी हैं ये तुझ बिन...
बिल्कुल मेरी तरह...!!!
Surbh! Nema
बेशक हर दुआ कबूली नहीं जाती,
पर सब्र की इंतिहाँ भी खाली नहीं जाती ।
मैने करीब से देखा है उस खुदा की रहमत को,
यहाँ ख़ामोश दुआ कभी नकारी नहीं जाती...!!!
Surbh! Nema
धर्म-जाति के फ़ासलों को छोड़,
आओ हम सब एक "भारत" बन जाएँ ।
मंदिर-मस्जिद कभी और बना लेंगे ए-दोस्त.....
पहले हम इंसान तो बन जाएँ...!!!
Surbh! Nema
मत पूछ ए-गालिब,
मेरी दास्ताँ-ए-मोहब्बत...
बस यूँ समझ ले,
मुस्कुराहटों की चादर ओढ़ एक तूफान को छिपा रखा है मैनें.!!!
Surbh! Nema
तू भले अहसान मानना,
हम उसे तेरी ईदी समझ लेंगे,
तू बस पल भर के लिए आ जा..
हम अपना चाँद देख,
ये रोज़ा इफ्तार कर लेंगे...!!!
Surbh! Nema
तेरी गोद में खेल बड़ी हुई मैं,
ऊँगली पकड़ तुमने चलना सिखाया ।
बेटी थी पर बेटे जैसा,
जीवन का हर पाठ पढ़ाया ।
मुश्किलें मेरी थी,
पर रास्ता तुमने बनाया ।
दुत्कारती थी ये दुनिया,
तुमने मेरा साहस बँधाया ।
गुस्ताख़ियाँ भी कुछ कम न थी मेरी,
पर तुमने कभी मुँह न फिराया ।
लड़खड़ाए हुए कदमों पर मेरे,
तुमने ही तो हाथ बढ़ाया ।
ऋणी रहूँगी ए-ख़ुदा मैं तेरी,
तूने जो रहमत बरसाया,
अपना अंश धरती पर देकर,
मुझे उसकी गोद में खिलाया ।
आज एक ऋण और माँग रही हूँ...
मेरी एक अरदास सुन ले....
चाहे तू ले ले ख़ुशियाँ मेरी,
चाहे जीवन दर्द से भर दे,
बस एक करम कर दे ए-मालिक,
"मुस्कुराहट मेरे "माँ-बाबा" की
तू अपनी लेखनी से अमर कर दे...
तू अपनी लेखनी से अमर कर दे...!!!"
Surbh! Nema
18-06-17
04:32PM
मुझे झुकाने की तेरी हर ख़्वाहिश पूरी कर ले ए-ज़िंदगी,,,
पर मेरी भी एक बात याद रख...
सजदा तो तुझे एक दिन मेरा ही करना होगा...!!!
Surbh! Nema