व्यथित है मन,
प्रश्नित लाखों पांचाली,
क्या फिर से चीर बढ़ाओगे तुम ।
क्या सृष्टि की रक्षा की ख़ातिर,
फिर "गोविन्द" कहलाओगे तुम ।
धर्म धँस गया अधर्म तले,
अन्याय ही अब न्याय है,
पर अब भी एक आस है "माधव"
फिर महासंग्राम रचाओगे तुम ।
बात होगी जो नारी के रक्षण की,
तो अब सुदर्शन भी उठाओगे तुम ।
हाँ "कान्हा" विश्वास है मुझे,
एक दिन ज़रूर आओगे तुम...
एक दिन ज़रूर आओगे तुम...!!!
✍सुरभि
१२-१२-२०१७
११:४१pm
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