नफ़रत करूँ भी तुझसे तो कैसे करूँ,
जब नाम इसका तुझसे जुड़ता है.....
न जाने क्यों,
नफ़रत से भी "मोहब्बत" सी हो जाती है...!!!
Surbh! Nema
नफ़रत करूँ भी तुझसे तो कैसे करूँ,
जब नाम इसका तुझसे जुड़ता है.....
न जाने क्यों,
नफ़रत से भी "मोहब्बत" सी हो जाती है...!!!
Surbh! Nema
हर रोज़ की तरह उस दिन भी मैं Room की तलाश में यहाँ-वहाँ भटक रही थी तभी मेरी नज़र एक घर पर गई, वहाँ एक Banner "Rooms Available For Girls" लगा हुआ था, काफ़ी फटा-पुराना, धूल खाया हुआ…ख़ैर मुझे क्या मुझे तो Room चाहिए था…!!!
मैं उस घर में गई और Gate खटखटाया, बहुत देर तक किसी ने Gate नहीं खोला तो मैं वहाँ से लौटने लगी तभी अचानक एक आवाज़ आई "कौन है…???"
इतना सुनते ही मैनें अपने कदम वापस ले लिए और कहा- मुझे Room देखना है…!!!
कुछ ही पल बाद Gate खुला…लेकिन उस Gate का खुलना क्या था मुझे कई सवालों ने घेर लिया, वो नज़ारा कुछ ऐसा था कि मेरी Room मिलने की सारी ख़ुशी न जाने कहाँ गुम हो गई…!!!
उस Gate के पीछे एक दादीमाँ थी, क़रीब 80 साल उम्र होगी उनकी । शायद चलते भी नहीं बनता था उनसे इसलिए एक कुर्सी के सहारे Gate तक आईं थी वो । उन्होंने मुझे अंदर बुलाया और मेरे बारे में पूछने लगीं ।
मैने Room के लिए बात की तो उन्होंने अपने बारे में बताते हुए कहा-
"उनके बच्चे उसी घर में रहते हैं लेकिन अजनबियों की तरह इसलिए अपना खर्चा चलाने के लिए वो Room किराए पर देती हैं पर उनके बच्चे शायद इतने समझदार हो चुके हैं कि उन्हें अपने माता-पिता का इस तरह खर्चा चलाना भी गँवारा नहीं ।"
उनकी बातें सुन मैं बिना कुछ कहे वहाँ से वापस आ गई…...हर पल उनका चेहरा सामने आता जैसे किसी अपने के प्यार के लिए कई बरसों से तरस रहा हो।
ये सब देख मेरे ज़हन में बस एक ही ख़याल आया-
" क्या हम आधुनिकता के पीछे-पीछे इतने दूर निकल आए कि हमने अपनी संस्कृती, अपने संस्कार यहाँ तक कि अपने माता-पिता को ही पीछे छोड़ दिया…????"
Surbh! Nema
15-01-2017
07:12PM