एक सांझ कभी,
मोहब्बत को भी अत़ा कर मौला....
ये जुदाई का रोज़ा मुझसे,
और नहीं निभाया जाता...!!!
✍सुरभि
एक सांझ कभी,
मोहब्बत को भी अत़ा कर मौला....
ये जुदाई का रोज़ा मुझसे,
और नहीं निभाया जाता...!!!
✍सुरभि
कुछ तो मजबूरी रही होगी....
वर्ना कलम पकड़,
लकीर खींचने वाले ये नन्हें हाथ,
यूँ ठेला ना खींचते...!!!
✍सुरभि
महज़ सौंधी खुशबू नहीं,
मोहब्बत की ये नज़्म भी समझो...
अरसे से तपती माटी ने आज,
बारिश की बून्दों का...
श्रृंगार किया है...!!!
✍सुरभि
कभी शिद्धत से सुनो तो पता चले...
ये बेज़ुबान ख़ामोशियाँ,
ज़ुबा से कहीं ज्यादा बतियाती हैं...!!!
✍सुरभि
अंजाने अजनबियों सी मैं,
जब इन गलियों मे आई थी ।
क्षत्र-छाया मिली आपकी,
आदरणीय आपको पाई थी ।
ज़िंदगी के इस संघर्ष में,
विश्वास भी डगमगाया था ।
धीरज धरे चलने का हुनर,
आपने ही तो सिखाया था ।
आज नई चुनौती से फिर,
जीवन एक बार गुज़र रहा है ।
बंधाया था जो विश्वास आपने,
वो टूट कर जैसे बिखर रहा है ।
मैं झुकी हूँ मेरी कलम झुकी है,
कर रही है दुआ ख़ुदा से ।
सलामत रखे सदा आपको,
हमें फिर सानिध्य मिले आपसे ।
✍ सुरभि
१८-०४-२०१८
१०:३२am
रूह काँप उठी है मेरी,
मैं तो बस इंसान हूँ ।
पर तुम क्यों इतने ख़ामोश हो कान्हा,
तुम तो सबके भगवान हो ।
तेरे द्वार पर आकर जाने कितने,
जीवन तबाही से बच गए ।
पर ये कैसे हैवान थे कान्हा,
जो पाप का ताण्डव रच गए ।
किसी ने उस मासूम गुड़िया पर,
पिता सा आश्रय किया होता ।
कुछ और ना सही इंसान होने का,
एक परिचय तो दिया होता ।
क्यों नही काँपे हाँथ उनके,
जब पीड़ा से वो चिल्लायी होगी ।
एक नन्ही कली खिलने से पहले,
जाने कितनी बार मुरझाई होगी ।
एक अन्याय से सहमा परिवार,
दूजे अन्याय का अब शिकार होगा ।
कोई खेलेगा दाँव सियासी,
और अंधा कानून लाचार होगा ।
आज इतिहास भी दुहराने के सच से,
खुद की नज़रे चुराता होगा ।
"निर्भया" दास्ताँ पर "आसिफ़ा" लिखने में,
हाथ तो उसका भी कतराता होगा ।
संभल भी जा ए-मानव,
तू कितना विध्वन्श मचाएगा ।
अपने पुरुषत्व पर अहम् कर के,
तू और कितना इतराएगा ।
अपनी करतूतों से मुल्क का नाम,
तूने माटी में मिला दिया ।
स्वर्णिम अक्षरों वाले "भारत" को तूने,
उपहार काले आखर का दिला दिया...!!!
✍ सुरभि
१३-०४-२०१८
०८:४३pm