एक सवाल मेरे ज़हन को बहुत सताता है....
"दशहरा" कहकर हर शख़्स,
क्यों रावण को जलाता है ।
जिसे प्रभु श्री राम ने तारा,
मोह-माया के बंधन से उबारा ।
दोषी था वो स्त्री जाति का,
इस बात का उसे अहसास दिलाया ।
पर हमारा समाज ये अब क्या कर रहा है....
जो रावण है ही नही उसे,
क्यों ख़ुद राम बनकर मार रहा है ।
वो तो माता सीता को बस हर कर लाया,
पर वाह रे समाज....
तूने क्या ये ढोंग रचाया ।
अपराधी होता है जो बेटी का,
अक्सर तुम उसे बचाते हो ।
कहते हो कभी नाबलिग उसे,
कभी हालात का हवाला दे जाते हो ।
करते हो जिन बेटियों की कोख़ में हत्या...
उन्हें ही कन्या कहकर,
नौ दिन भोज कराते हो ।
मान नही सम्मान नहीं,
दूजे की बहन का तेरी नज़र में...
पर देखे भी कोई जो तेरी बहन को,
तो किस हक़ से त्यौरी चढ़ाते हो ।
अरे मर्द हो तो ख़ुद लड़ो जंग अपनी,
माँ-बहन की बातें कर,
क्यों आड़ में उसकी छिप जाते हो ।
अरे वो रावण तो मर गया,
इस संसार से तर गया ।
कभी फ़ुर्सत से अपने भीतर भी झाँक,
कोई रावण तुझमे भी तो नहीं....
ज़रा इस सच को भी आँक....
ज़रा इस सच को भी आँक...!!!
Surbh! Nema
२९-०९-२०१७
४:०९pm