Sunday 18 June 2017

!!!... ऋण ...!!!

तेरी गोद में खेल बड़ी हुई मैं,
ऊँगली पकड़ तुमने चलना सिखाया ।
बेटी थी पर बेटे जैसा,
जीवन का हर पाठ पढ़ाया ।

मुश्किलें मेरी थी,
पर रास्ता तुमने बनाया ।
दुत्कारती थी ये दुनिया,
तुमने मेरा साहस बँधाया ।

गुस्ताख़ियाँ भी कुछ कम न थी मेरी,
पर तुमने कभी मुँह न फिराया ।
लड़खड़ाए हुए कदमों पर मेरे,
तुमने ही तो हाथ बढ़ाया ।

ऋणी रहूँगी ए-ख़ुदा मैं तेरी,
तूने जो रहमत बरसाया,
अपना अंश धरती पर देकर,
मुझे उसकी गोद में खिलाया ।

आज एक ऋण और माँग रही हूँ...
मेरी एक अरदास सुन ले....
चाहे तू ले ले ख़ुशियाँ मेरी,
चाहे जीवन दर्द से भर दे,
बस एक करम कर दे ए-मालिक,

"मुस्कुराहट मेरे "माँ-बाबा" की
तू अपनी लेखनी से अमर कर दे...
तू अपनी लेखनी से अमर कर दे...!!!"

                                         Surbh! Nema
                                            18-06-17
                                            04:32PM

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