तेरी गोद में खेल बड़ी हुई मैं,
ऊँगली पकड़ तुमने चलना सिखाया ।
बेटी थी पर बेटे जैसा,
जीवन का हर पाठ पढ़ाया ।
मुश्किलें मेरी थी,
पर रास्ता तुमने बनाया ।
दुत्कारती थी ये दुनिया,
तुमने मेरा साहस बँधाया ।
गुस्ताख़ियाँ भी कुछ कम न थी मेरी,
पर तुमने कभी मुँह न फिराया ।
लड़खड़ाए हुए कदमों पर मेरे,
तुमने ही तो हाथ बढ़ाया ।
ऋणी रहूँगी ए-ख़ुदा मैं तेरी,
तूने जो रहमत बरसाया,
अपना अंश धरती पर देकर,
मुझे उसकी गोद में खिलाया ।
आज एक ऋण और माँग रही हूँ...
मेरी एक अरदास सुन ले....
चाहे तू ले ले ख़ुशियाँ मेरी,
चाहे जीवन दर्द से भर दे,
बस एक करम कर दे ए-मालिक,
"मुस्कुराहट मेरे "माँ-बाबा" की
तू अपनी लेखनी से अमर कर दे...
तू अपनी लेखनी से अमर कर दे...!!!"
Surbh! Nema
18-06-17
04:32PM
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया भईया🙏🙏
Deleteshaandaar
ReplyDeleteधन्यवाद🙏🙏
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