कुदरत के नूर को मैं क्या लिखूँ,
फरिश्ता है जो ख़ुद,
उसकी नुमाइश क्या लिखूँ ।
अल्फाज़ों के समुंदर में,
उतरी है ये खामोश कलम,
ए-ख़ुदा तू ही बता....
तेरे करिश्में पर मैं अल्फाज़ लिखूँ,
तो क्या लिखूँ...!!!
✍सुरभि
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