कितना प्यारा मौसम था....जैसे हवाएँ प्यार के रंग बिखेर रही हो...!!!
अरसे बाद मिले थे हम, आख़िर उसकी शिकायतें जायज़ थी....हालांकी मेरे भी कुछ सवाल थे और उसकी शिकायतों के जवाब भी ।
कुछ ख़्वाब थे जो हक़ीक़त में बदलने के पहले ही दम तोड़ चुके थे....कुछ अधूरी बातें थीं जिन्हें कभी पूरी होने का वक्त ही ना मिला ।
इस बार भी हर बार की तरह मैं ख़ामोश थी और ये ख़ामोशी वजह थी
"बस एक सवाल की"
जो हर गिले-शिकवे से परे मैं उससे सुनना चाहती थी सिर्फ एक सवाल- "कैसी हों"...???
पर अफ़सोस हर बार की तरह इस बार भी उसकी बातों में बस शिकायतें ही थी ।
वो लम्हा भी कितना अजीब था जहाँ हम दोनों ही ख़ामोश थे । एक को जवाब का इंतज़ार था तो दूजे को सवाल का...!!!
हवाएँ भी जैसे हमारी ख़ामोशी पढ़ चुकीं थी और शायद हमारी चुप्पी टूटने का इंतज़ार कर रही थी । चारो ओर सिर्फ एक सन्नाटा सा था...जैसे दो ख़ामोश नज़रो के बीच का सन्नाटा या कहूँ दो उलझी धड़कनो के टूटने का सन्न्नाटा...!!!
ये शिकायत, ये गिले-शिकवे पहले से कुछ भी तो अलग ना था फिर भी ना जाने क्यों एक उम्मीद थी बस एक उम्मीद ।
वो शायद कुछ कहना चाहता था, मैं उस अहसास को महसूस कर सकती थी । वो कुछ कहता कि पहले ही मेरे चेहरे पर एक मुस्कान फूट पड़ी....तभी अचानक एक आवाज़ आई....
"सुबह हो गई है ख़्वाबों की दुनिया से बाहर आ जा"
इतना सुनते ही मेरे नींद टूट गई....मैनें आँखें मल कर देखा तो सामने कुछ भी ना था...ना वो, ना सन्नाटा और ना ही कोई सवाल...!!!
कुछ बचा था वो थी मैं और मेरा इंतज़ार
सच......"सुबह हो चुकी थी"
✍सुरभि
०१-०४-२०१८
०८:०९ pm
वाह... लाजवाब।
ReplyDeleteशुक्रिया :)
Delete💓 touching
DeleteThank You Diii :)
DeleteVery nice
Delete🙏🙏🙏
Delete❤️
ReplyDelete